डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – क्यों कर पालिश करती हो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 168 – गीत – क्यों कर पालिश करती हो…
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सुन्दर सुन्दर नाखूनों पर
क्यों कर पालिश करती हो।
रूपभार से झुकी देह पर
भार भला क्यों धरती हो।
साज बाज की उसे जरूरत
जिसके पास कमी होती
वो क्यों पत्थर करे इकट्ठे
जिसके पास रखा मोती
अनबींधे मोती सा यौवन, पास रखे क्यों डरती हो
साधारण शृंगार तुम्हारा
सच, विशेष सा लगता है।
चन्द्रानन को देख देखकर
मन में ज्वार उमगता है.
औ हँसे चंदनिया, कैसे धीरज धरती हो
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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