श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 27 ☆
☆ कविता ☆ “जाने दो…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
भले आज चोट तुमने खाई है
है घायल मगर वो अरसे से
आज आंखें उसकी पोंछ दो
सदियों के ज़ख्म पर
मरहम कुछ पलों का लगा दो
अगर वो जाना चाहें
प्यार से अलविदा कह दो…
आज उसे… तुम बस जाने दो….
मन में गालियां बांधकर
उसे जनम भर कंधे पे ना रख दो
और आसुओं में बहने से अच्छा
नाव होटों की बना दो….
आज उसे… तुम बस जाने दो….
रिश्तों के धागे तो टूट जाएंगे
धागों का रेशम तुम फेंक न दो
वहीं प्यार के रेशम को
पगड़ी पर अपने सजा दो…
वो तुम्हें समझ लेगी…
जाएगी जरूर मगर
सच में ना जा पाएगी
कुछ क़दम अंधेरे में चले
तो चांद में बस
तुम्हे ही ढूंढेगी…
मगर आज उसे… तुम बस जाने दो….
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈