श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक चिंतनीय आलेख – “विपक्ष की भूमिका में व्यंग्यकार”)
☆ चिंतन – “विपक्ष की भूमिका में व्यंग्यकार” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
हमें ऐसा लगता है कि व्यंग्य कभी भी कहीं भी हो सकता है बातचीत में, सम्पादक के नाम पत्र में, कविता और कहानी आदि में भी। व्यंग्य लिखने में सबसे बड़ी सहूलियत ये है कि “जैसे तू देख रहा है वैसे तू लिख”।
समसामयिक जीवन की व्याख्या उसका विश्लेषण उसकी सही भर्त्सना एवं विडम्बना के लिए व्यंग्य से बड़ा कारगर हथियार और कोई नहीं। समाज में फैली विषमता, राजनीति में व्याप्त ढकोसला, भ्रष्टाचार, दोगलापन आदि सहन नहीं होता तो व्यंग्य लिखा जाता है। जो गलत या बुरा लगता है उस पर मूंधी चोट करने व्यंग्य बाण छोड़े जाते हैं और कहीं न कहीं से लगता है कि व्यंग्यकार की कलम ईमानदार, नैतिक और रुढ़ि विरोधी को नैतिक समर्थन दे रही है। इसलिए हम कह सकते हैं कि व्यंग्य साहित्य की ही एक विधा है।
साहित्य में व्यंग्य की पहले शूद्र जैसी स्थिति थी, कहानीकार, कवि आदि व्यंग्य को तिरस्कृत नजरों से देखते थे, पत्रिकाएं व्यंग्य से परहेज़ करतीं थीं, पर अब व्यंग्य का दबदबा हो चला है परसाई ने लठ्ठ पटककर व्यंग्य को ऊपर बैठा दिया है, व्यंग्य की लोकप्रियता को देखकर आज कहानीकार, कवि जो व्यंग्य से चिढ़ते थे ऐसे अधिकांश लोग व्यंग्य की शरण में आकर अपना कैरियर बनाने की ओर मुड़ गए हैं।
पाठक अब कहानी के पहले व्यंग्य पढ़ना चाहता हैं, क्योंकि आम आदमी समाज में फैली विषमता, राजनीति में व्याप्त ढकोसला, भ्रष्टाचार, दोगलापन, पाखण्ड और केंचुए की प्रकृति के लोगों के चरित्र को देखकर हैरान हैं,जो पाठक व्यक्त नहीं कर पाता है वह व्यंग्य पढ़कर महसूस कर लेता है। व्यंग्य समाज को बेहतर से बेहतर बनाने की सोच के साथ काम करता है। इसीलिए माना जाता है कि समाज और साहित्य में व्यंग्य की भूमिका बहुत महत्व रखती है।जब लोकतंत्र को खत्म करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताले लगाए जाते हैं, प्रेस और मीडिया बिक जाते हैं तो व्यंग्य और व्यंग्यकार की भूमिका अहम हो जाती है। व्यंग्यकार अपने व्यंग्य से जनता के बीच चेतना जगाने का काम करता है,समाज में जाग्रति फैलाता है और विपक्ष की भूमिका में नजर आता है, पर इन दिनों नेपथ्य में चुपचाप कुछ यश लोलुप, सम्मान के जुगाड़ू लोग शौकिया व्यंग्यकारों की भीड़ इकट्ठी कर चरवाहा बनकर भेड़ें हांक रहे हैं और व्यंग्य को फिर शूद्र बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं, उन्हें समाज और सामाजिक सरोकारों से मतलब नहीं है वे पहले अपने नाम और फोटो से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में तुले हैं,समाज और साहित्य के लिए ये स्थितियां घातक हो सकतीं हैं।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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