(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – कैलेंडर बदला।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 252 ☆
कविता – कैलेंडर बदला
(चैट जी पी टी से लिखी गई, किंचित परिष्कृत कविता)
नया साल आया, नयी राहें बनीं,
जिंदगी में, नई संभावनाएं बनी ।
बीता हुआ कल, हुआ आज अतीत,
नए साल के संग, नयी बने रीत।
मिलकर लिखें, जिदंगी की कहानी नई,
पल पल में हो खुशियों की रवानी नई
सफलता सर्वत्र, मिले संपन्नता विपुल
इस साल में हों, सब स्वस्थ सुखी अतुल।
दिन की रौशनी, नई रचे इबारत
रात हो, खुशियों से भरी इबादत
भूलें गुजरे समय की कटुता,
वैमनस्य
नये साल के साथ, नए
हों सामंजस्य ।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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