प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “कामना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “कामना” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

चाह नहीं मेरी कि मुझको मिले कहीं भी बड़ा इनाम

इच्छा है हो सादा जीवन पर आऊँ जन-जन के काम ॥

निर्भय मन से करूँ सदा कर्त्तव्य सभी रह निरभिमान

सेवाभाव बनाये रक्खे मन में नित मेरे भगवान ॥

रहूँ जगत् के तीन-पाँच से दूर मगर नित कर्म-निरत

भाव कर्म औ’ मन से जग में करता रहूँ सभी का हित ॥

मन में कभी विकार न उपजे, देश प्रेम हो सदा प्रधान

स‌द्विचार का रहूँ पुजारी, बुद्धि सदा यह दें भगवान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments