हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक सपने – #36 – कैसे हो गाँव का विकास ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “कैसे हो गाँव का विकास”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 35 ☆

☆ कैसे हो गाँव का विकास

है अपना हिंदुस्तान कहाँ, वह बसा हमारे गाँवों में ! दुनिया में हमारे गांवो की विशिष्ट पहचान यहां की आत्मीयता,सचाई और प्रेम है.विकास का अर्थ आर्थिक उन्नति से ही लगाया जाता है, हमारे गाँवो का ऐसा विकास होना चाहिये कि आर्थिक उन्नति तो हो किन्तु हमारे ग्रामवासियों के ये जो चारित्रिक गुण हैं, वे बने रहें . गांवो के आर्थिक विकास के लिये कृषि तथा मानवीय श्रम दो प्रमुख साधन प्रचुरता में हैं. इन्हीं दोनो से उत्पादन में वृद्धि व विकास संभव है. उत्पादकता बढ़ाने के लिये बौद्धिक आधार आवश्यक है, जो अच्छी शिक्षा से ही संभव है. पुस्तकीय ज्ञान व तकनीक शिक्षा के दो महत्व पूर्ण पहलू हैं. ग्राम विकास के लिये तकनीकी शिक्षा के साथ साथ चरित्रवान व्यक्ति बनाने वाली शिक्षा दी जानी चाहिये. वर्तमान स्वरूप में शिक्षित व्यक्ति में शारीरिक श्रम से बचने की प्रवृत्ति भी स्वतः विकसित हो जाती है, यही कारण है कि शिक्षित युवा शहरो की ओर पलायन कर रहा है. आज ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो सुशिक्षित बनाये पर  व्यक्ति शारीरिक श्रम करने से न हिचके.

स्थानीय परिस्थितियो के अनुरूप प्रत्येक ग्राम के विकास की अवधारणा भिन्न ही होगी, जिसे ग्राम सभा की मान्यता के द्वारा हर ग्रामवासी का अपना कार्यक्रम बनाना होगा. कुछ बिन्दु निम्नानुसार हो सकते हैं..

  1. जहाँ भूमि उपजाऊ है वहां खेती, फलों फूलो बागवानी नर्सरी को बढ़ावा, व कृषि से जुड़े पशुपालन का विकास
  2. वन्य क्षेत्रो में वनो से प्राप्त उत्पादो से संबंधित योजनायें व कुटिर उद्योगो को बढ़ावा
  3. शहरो से लगे हुये गांवो में शासकीय कार्यालयो में से कुछ गांव में प्रारंभ किया जाना,जिससे शहरो व गांवो का सामंजस्य बढ़े
  4. पर्यटन क्षेत्रो से लगे गाँवो में पर्यटको के लिये ग्रामीण आतिथ्य की सुविढ़ायें सुलभ करवाना
  5. विशेष अवधारणा के साथ समूचे गांव को एक रूपता देकर विशिष्ट बनाकर दुनिया के सामने रखना, उदाहरण स्वरूप जैसे जयपुर पिंक सिटी के रूप में मशहूर है, किसी गांव के सारे घर एक से बनाये जा सकते हैं, उन्हें एक रंग दिया जा सकता है और उसकी विशेष पहचान बनाई जा सकती है, वहां की सांस्कृतिक छटा के प्रति, ग्रामीण व्यंजनो के प्रति प्रचार के द्वारा लोगो का ध्यान खींचा जा सकता है.
  6. कार्पोरेट ग्रुपों द्वारा गांवों  में अपने कार्यालय खोलने पर उन्हें करों में छूट देकर कुछ गांवो की विकास योजनायें बनाई जा सकती है।

इत्यादि इत्यादि अनेक प्रयोग संभव हैं,पर हर स्थिति में ग्रामसंस्कृति का अपनापन, प्रेम व भाईचारे को अक्षुण्य बनाये रखते हुये, गांव से पलायन रोकते हुये,गाँवो में सड़क, बिजली,संचार,स्वच्छ पेय जल, स्वास्थ्य सुविधाओ की उपलब्धता की सुनिश्चितता व स्थानीय भागीदारी से ही गांवो का सच्चा विकास संभव है.

 

© अनुभा श्रीवास्तव्