श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक चिंतनीय आलेख – “लकीर का सवाल”)

☆ चिंतन – “लकीर का सवाल☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

एक सवाल कुछ दिनों से मन में उमड़ घुमड़ रहा है कि सोशल मीडिया में इन दिनों व्यंग्य बहुत चर्चा में है, पर कुछ लोग अपनी बड़ी लकीर खींचकर सामने वाले को फकीर बनाने में विश्वास कर रहे हैं और कुछ विधा और शैली को लेकर खेमेबाजी में व्यस्त हैं ?

एक आलोचक कम व्यंग्यकार ने घुटना रगड़ते हुए जबाब दिया – व्यंग्य पहले हाशिये में था। कवि सम्मेलन में हास्य कवि बुलाये जाते थे फिर धीरे-धीरे हास्य के साथ व्यंग्यकार को भी बुलाया जाने लगा और मंच में इनको चूरन चटनी की तरह इस्तेमाल किया गया। धर्मयुग जैसी पत्रिकाएं भी हास्य – व्यंग्य छापतीं थीं। व्यंग्य धीरे-धीरे आया लेकिन व्यंग्य को मजबूत करने की बजाय कुछ लोग विधा और शैली के बहाने खेमेबाजी करने में लग गए, जबकि आज व्यंग्य का एक मानक बनाया जाना चाहिए। व्यंग्य के व्याकरण पर चर्चा होनी चाहिए, हास्य की तरह व्यंग्य को ग्यारहवां रस बनाने पर विचार होना चाहिए क्योंकि लय, गति और रस के बगैर कोई बात गले नहीं उतरती। व्यंग्य की लान में बहुत सी जंगली घास अनजाने में ऊगती है तो उसको निकालते रहना बेहद जरूरी है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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