श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 29 ☆
☆ कविता ☆ “अभी तो मैं जवान हूँ…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
दिमाग की तलवार हूँ
समय की मैं धार हूँ
चढ़ता हुआ नशा हूँ
मैं बढ़ती हुई रात हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ ।
दरिया हूँ भरा हुआ
कश्तियों की जान हूँ
जिगर की मैं शान हूँ
दिल की एक आन हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ ।
वक्त की जो धूप है
सावन की ये आग है
फूलों की एक छांव हूँ
काँटों की मैं मौत हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ ।
ज़ुल्फों की जो चांदी है
वो तो गुजरी आंधी है
चमकता एक अंदाज हूँ
जैसे कोई बाज हूँ
अभी तो मै जवान हूँ ।
जंगे पाया हजार हूँ
फिर भी आज जिंदा हूँ
पीकर भी एक प्यासा हूँ
जिंदगी का मैं प्यार हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ ।
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈