श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “कोहरे में”।)
☆ कविता – “कोहरे में” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
कोहरे की
चादर ओढ़कर
अभी अभी
पहुंचा हूँ गाँव।
गाँव में
सब चलता है
मौसम खराब
होने से
किसी पर कोई
असर नहीं होता।
धूप कभी
दिखती छुपती
नहाने चली जाती
धनिया गोबर से
भरा तसला लिए
कोहरे में कहां
गुम हो जाती।
सरसों के फूल
धुले धुले से
लगते दूर से
कोहरे की चादर
फेंककर
अलसाई सी
जग गई है धरती।
मेहमान बनकर
आता है कोहरा
कोहरे में किसान
सब्जी लेकर
निकल पड़ता है
बाजार की ओर
क्योंकि मेहमान
बनकर आता है
कोहरा
गांव की ओर।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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