हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 35 – बाल गीत ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक अतिसुन्दर “बाल गीत”। इस बालगीत ने अनायास ही बचपन की याद दिला दी। कितना सीधा सादा सदा और निश्छल बचपन था । न कोई धर्म, न कोई जांत पांत का बंधन न कोई भेदभाव। काश वे दिन और वैसा ही ह्रदय सदैव बना रहता। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने मनोभावनाओं को बड़े ही सहज भाव से इस बाल गीत लिखा है । इस अतिसुन्दर गीत के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 35 ☆
☆ कविता / गीत – बाल गीत ☆
बचपन में हम सब ने खेला।
काऊ-माऊ,मकड़ी-जाला।
कूट-कूटकर खूब बनाया।
खटमिट्ठा रस इमली वाला
मस्जिद कभी,कभी फिर मंदिर।
सब मिल-जुलकर बैठे अंदर।
टोंका नहीं किसी ने बिलकुल
नहीं परस्पर कोई अंतर।
खेल खिलौने चना चबेना
बुड्ढी बाल गुलाबी वाला।
सबके मन को भाता प्यारा
फुग्गे वाला भोला भाला
दिखती नहीं कहीं कठपुतली
न छू मंतर जादू वाला।
बच्चों को भाता मोबाइल
बढ़िया गेम दिखाने वाला।।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश