हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #35 – तुम्हारी महफि़ल हमारी दुनिया ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक बेहतरीन हिंदी ग़ज़ल –  “तुम्हारी महफि़ल हमारी दुनिया  ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 35☆

☆ ग़ज़ल – तुम्हारी महफि़ल हमारी दुनिया 

 

चलो बनाए नया तराना

सुरो न ढूँढो कहीं बहाना

 

चमन में आई नयी बहारे

हिजाब तेरा वही पुराना

 

कसम हमारी न दिल को तोडो

नहीं हमारा कहीं ठिकाना

 

सफे़द मलमल बदन तुम्हारा

पुकारु कैसे तुम्हे शबाना

 

गिरफ़्त है हम तेरी नजर में

तूने लगाया कहाँ निशाना

 

तुम्हारी महफि़ल हमारी दुनिया

रफा़ दफा़ ना करो रवाना

 

न का़तिलों की यहाँ कमी है

कहे न जा़लिम तुम्हे जमाना

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

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