श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – ऊँचे हिमगिरि के शिखर। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 197 ☆
☆ संतोष के दोहे – सब मिल गाओ गीत प्रेम के ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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आज अवध में धूम मची है
सरयू -सलिला सजी-धजी है
आएंगे प्रभु राम हमारे
ढोलक घंटी झाँझ बजी है
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बरसों से थी आस हमारी
आज मिली हैँ खुशियां सारी
सब मिल गाओ गीत प्रेम के
प्रभु मिलन की आई घड़ी है
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प्रभु का मन्दिर भव्य बना है
बिराजे जिसमें राम लला हैँ
केंद्र बना सबकी आशा का
सबको अब आने की पड़ी है
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हर घर में उत्सव दीवाली
खूब सजीं पूजा की थाली
दिल की बातें कर लो प्रभु से
आज कृपा की हवा चली है
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सारे जग से न्यारा मंदिर
हम सबका है प्यारा मंदिर
आस दरश “संतोष” लिए है
बढ़ी हृदय में उतावली है
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आज अवध में धूम मची है
सरयू सलिला सजी-धजी है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈