हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 25 ☆ जीत ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “जीत ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 25 ☆
धुंध भरी रातों में
अंधियारों की बातों में
मर से जाते हैं एहसास
लगता है नहीं है कोई आसपास
छोटी सी होती है रात
बदल जाते हैं जज़्बात
सुबह पंख फैलाती है
सारे ग़म ले जाती है
जाड़ा भी कुछ घड़ी का मेहमान है
उसमें भी कुछ ही पल की जान है
वो भी कुछ दिनों में उड़ जाता है
और आफताब फिर हमसफ़र बन जाता है
जब भी ग़म की ठंडी से जकड जाएँ जोड़
जान लेना कायनात के पास है उसका तोड़
मरे हुए एहसास फिर से जग जायेंगे
बस, शायद वो किसी और रूप में सामने आयेंगे
आसपास भी किसी की ज़रूरत इतनी नहीं बड़ी
रूह की चमक से ज़िंदगी की रात जड़ी
उस चमक से बुझा लेना ज़हन की प्यास
कोई और नहीं तो ख़ुदा होता ही है पास
ज़िंदगी नदी सी है बढती ही जायेगी
उसकी लहर फैलने को लडती ही जायेगी
बना लेगी वो अपने कहीं न कहीं रास्ते
कभी भी रोना नहीं किसी उदासी के वास्ते
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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