डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा जी द्वारा रचित माँ नर्मदा वंदना “ नर्मदा – नर्मदा, मातु श्री नर्मदा”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 33☆
☆ नर्मदा – नर्मदा, मातु श्री नर्मदा ☆
नर्मदा – नर्मदा, मातु श्री नर्मदा
सुंदरम, निर्मलं, मंगलम नर्मदा।
पूण्य उद्गम अमरकंट से है हुआ
हो गए वे अमर,जिनने तुमको छुआ
मात्र दर्शन तेरे पुण्यदायी है माँ
तेरे आशीष हम पर रहे सर्वदा। नर्मदा—–
तेरे हर एक कंकर में, शंकर बसे
तृप्त धरती,हरित खेत फसलें हंसे
नीर जल पान से, माँ के वरदान से
कुलकिनारों पे बिखरी, विविध संपदा। नर्मदा—–
स्नान से ध्यान से, भक्ति गुणगान से
उपनिषद, वेद शास्त्रों के, विज्ञान से
कर के तप साधना तेरे तट पे यहाँ
सिद्ध होते रहे हैं, मनीषी सदा। नर्मदा—–
धर्म ये है हमारा, रखें स्वच्छता
हो प्रदूषण न माँ, दो हमें दक्षता
तेरी पावन छबि को बनाये रखें
दीप जन-जन के मन में तू दे मां जगा। नर्मदा—–
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 989326601