आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वो पहले प्यार के लमहे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 37 – वो पहले प्यार के लमहे… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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वो, पहले प्यार के लमहे कहाँ बिसराये जाते हैं
घुमड़कर और गहरे तक, दिलों पर छाये जाते हैं
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यहाँ काँटों में पलकर भी, जिये हम शान से लेकिन
वहाँ, फूलों के बिस्तर पर भी, वो मुरझाये जाते हैं
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यहाँ तो, देखने उनको, ये आँखें कबसे प्यासी हैं
हमामों में वहाँ, वो देर तक नहलाये जाते हैं
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वो, सजकर, डोलियों में जब कभी बाहर निकलते हैं
तो, काँधे आशिकों के ही, वहाँ लगवाये जाते हैं
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उन्हें जिद है, निशाना साधने, आखेट करने की
बना गारा, मचानों से हमीं बँधवाये जाते हैं
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उतारू जान लेने पर है, परवानों की, ये शम्मा
दिखाने आतिशी जल्वे हमीं बुलवाये जाते हैं
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तरीका है हसीनों का अजब श्रृंगार करने का
लहू, आशिक के दिल का ले, अधर रचवाये जाते हैं
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जलाकर, आशियाँ मेरा, वो दीवाली मनाते हैं
कहर, आचार्य हम पर इस तरह के ढाये जाते हैं
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© आचार्य भगवत दुबे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈