श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  देशभक्ति और राष्ट्रहित

☆ आलेख # 91 –  देशभक्ति और राष्ट्रहित…🇮🇳☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

एक देशभक्ति वो होती है जिसके जज्बे में खुद की परवाह न कर जवान देश के लिये रणभूमि में शहीद होते हैं.

एक देशभक्ति वह भी होती है जंहा आप अपने परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य और अपने कलेजे का टुकड़ा देश को समर्पित करते हैं और जिसके शहीद होने पर असीमित दुख और तकलीफों के बावजूद हमेशा गर्वित ही होते हैं, कभी पछतावा नहीं होता.

एक देशभक्ति वह भी है जंहा आपको लगता है कि ईमानदारी और समर्पण की भावना से जहां हैं जैसे हैं, अगर देश के लिये कुछ कर सकें तो ये खुद का सौभाग्य ही है.

पर देशभक्ति वो तो नहीं है और हो भी नहीं सकती जहां ये खुद को लगने लगे कि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति या किसी दल का समर्थन कर आप खुद को देशभक्त समझने लगें और बाकी अन्य विचार रखने वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाने लगें, लांछन लगाने लगें.

कम से कम अभी तक ऐसा नहीं हुआ है कि देश के सर्वोच्च और अतिमहत्वपूर्ण व जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनयिकों की निष्ठा पर सवाल खड़े किये गये हों. देश की नीतियों में जरूर समयानुसार परिवर्तन हुये हैं पर राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण सदा अखंड ही रहा है. नेतृत्व की क्षमता विभिन्न मापदंडों पर अलग अलग हो सकती है पर हर नेतृत्व, राष्ट्रहित और राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर खरा उतरा है.

इसलिये मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से टारगेटेड दुष्प्रचार कुल मिलाकर ओछेपन और असुरक्षा की भावना ही दर्शाता है. मात्र चुनाव के नाम पर अगर राजनीति का स्तर इसी तरह गिरता रहा तो आम नागरिक की बात तो छोड़ दीजिये, सीमा पर युद्ध के लिये प्राणोत्सर्ग तक करने को तैयार सैनिक इनसे क्या प्रेरणा पायेगा. बेहतर यही है कि राजनैतिक शुचिता इतनी तो रहे कि लोग राजनेताओं से कुछ तो प्रेरणा पा सकें, उन की निष्पक्ष प्रशंसा कर सकें.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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