हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 33 ☆ होना नहीं उदास ☆ डॉ. भावना शुक्ल
डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर प्रेरणास्पद रचना ‘होना नहीं उदास ‘।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 33 – साहित्य निकुंज ☆
☆ होना नहीं उदास ☆
पथ पर थक कर नहीं बैठना, होना नहीं उदास।
मंजिल चल कर खुद आएगी, पथिक तुम्हारे पास।
पहले पहल कदम रखने पर
गिरते हैं इंसान ।
धीरे-धीरे होती जाती
हिम्मत से पहचान ।।
हिम्मतवाले पांव मचलते, चलता रहे प्रयास।
पांव चूमकर कंकर कांटे
मांगेंगे वरदान।
वैष्णवता की लाज बचाने
कर देना एहसान ।।
आज सभी कुछ मिल सकता है, मिले नहीं विश्वास।
उल्टे सीधे बढ़ते जाना
जिनको नहीं कुबूल।
जाहिर है उनके होते हैं
अपने सिद्ध उसूल ।।
किसी तरह कुछ पा जाने को कहते नहीं विकास।
पथ पर थक कर नहीं बैठना, होना नहीं उदास।
मंजिल चल कर खुद आएगी पथिक तुम्हारे पास।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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