श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक रोचक एवं अतिसुन्दर व्यंग्य – “तौलिया सम्मान”।)
☆ व्यंग्य – “तौलिया सम्मान” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
वे सम्मान के भूखे थे, पेट भर सम्मान होता तब भी पेट भूख लगी …भूख लगी चिल्लाता रहता। शाल श्रीफल से घर भर जाता तो घरवाली सम्मान करने वालों को गाली बकती कहती – कैसे हैं ये सम्मान करने वाली संस्थाएं…. इनको शाल और श्रीफल के अलावा कुछ नहीं मिलता। एक दिन पति पत्नी में शाल के लगे ढेर पर झगड़ा हो गया, पत्नी गुस्से से लाल होकर बोली – सम्मान में शाल श्रीफल के साथ लिफाफा भी मिलता होगा, तो लिफाफा जाता कहां है? ध्यान रखना अगली बार से लिफाफा नहीं दिया तो सबके सामने ऐसा अपमान करूंगी कि सब सम्मान भूल जाओगे। पत्नी की डांट खाकर जब वो अगला सम्मान लेने पहुंचे तो डरे डरे से थे डर लग रहा था कि सम्मान मिलते समय पत्नी सार्वजनिक अपमान न कर दे, ले देकर जल्दबाजी में उन्होंने सम्मान कराया और जब माइक से बोलने की बारी आई तो कहने लगे दुनिया बहुत बदल गई है इसलिए अब सम्मान के तौर-तरीकों में भी बदलाव किया जाना चाहिए, हर बार शाल श्रीफल के सम्मान से अब जी भर गया है शाल श्रीफल के ढेर से घर भर गया है। अधिकतर पत्नियां चिड़चिड़ाने लगीं हैं, डांटती हैं, दुकान वाले दो सौ रुपए की शाल पचास रुपए में वापस लेते हैं, श्रीफल खरीदने वाले एक श्रीफल का अठन्नी देते हैं वैसे भी शाल का कोई व्यवहारिक उपयोग नहीं है, जिस शाल से सम्मान होता है उसी शाल को दुकान वाले को बेचने जाओ तो वे अपमान भी करते हैं और दो सौ रुपए की शाल के सिर्फ पचास रुपए देते हैं, इसलिए जरूरी है कि अब शाल बेचने वालों का धंधा मंदा किया जाना चाहिए और हर साहित्यकार का सम्मान कंधे में तौलिया डालकर किया जाना चाहिए, तौलिया हर किसी के काम की चीज है, अच्छी नरम तौलिया पत्नियां भी पसंद करतीं हैं, तौलिया बहुउपयोगी होता है, हमाम में जब सब नंगे हो जाते हैं तो तौलिया ही एक सहारा होती है, गुसलखाने में नहाने के बाद नरम तौलिया से शरीर पोंछने का अलग सुख होता है, जब आप घर में पट्टे की चड्डी पहने हों और अचानक दूध वाला घंटी बजा दे तो इज्जत बचाने के लिए आपको तौलिया लपेट कर ही बाहर से दूध लेना पड़ता है। तौलिया में गुण बहुत हैं सदा राखिए संग…
नई नई शादी में तो तौलिया बहुत काम आता है, कई लोग तौलिया लेकर सोते हैं। यदि तौलिए से सम्मान होने लगे तो संस्थाओं को भी सुविधा होने लगेगी, तौलिया आसानी से कहीं भी मिल जाता है, आपकी पत्नी ने कितना भी लड़ाई झगड़ा किया हो और बाथरूम में आप बिना तौलिया के चले गए हों तो आपके चिल्लाने पर पत्नी ही तौलिया लाकर देती है भले तौलिया लेते समय अधखुले दरवाजे से आपका खुला शरीर उसे दिख जाए तो उसे भी वह सहन कर लेती है। खास बात ये भी है कि तौलिया हर दिन हर वक्त काम आता है जबकि शाल तो सिर्फ ठंड के समय काम आती है और यदि ठंड नहीं पड़ी तो सम्मान वाली शाल कोई काम की नहीं, इसीलिए किसी ने कहा है….
दिल के आंगन में
कहीं धूप नहीं,
फ्रिक्र आईना ही सही
लेकिन आईने पे है
याद की गर्द …
अब क्या करिएगा, आईने की गर्द को तो तौलिया ही साफ करेगा न….शाल से तो आप गर्द साफ नहीं कर पाएंगे, और जब…
‘रोएंगे हम हजार बार,
कोई हमें रुलाए क्यों….’
तब भी आंसू पोंछने के लिए तौलिया ही साथ देगा, उस समय शाल से थोड़ी न आंसू पोंछ पाएंगे….तो सम्मान करने वालो शाल का मोह अब छोड़ो, अब तौलिया ओढ़ा कर सम्मान करने की आदत डालो, तौलिया सस्ता भी पड़ेगा और बाथरूम में तौलिया से पोंछने वाला रोज आपको याद करके एहसान भी मानेगा।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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