श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर रचित एक सकारात्मक लघुकथा “दुविधा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 179 ☆
🎊 लघु कथा – दुविधा 🎊
संपूर्ण भारतवर्ष में रामलला जी के विराजने का जश्न मनाने के लिए तरह-तरह से तैयारी कर रहे थे, और हो भी क्यों ना 500 साल तिरपाल बंधे कुटिया में ढके, प्रभु राम की मूर्ति राह देखते – देखते आखिर वह समय आ ही गया। जब पूरे विधि- विधान, बिना रोक-टोक और कोई दुविधा बिना हमारे प्रभु का भव्य मंदिर अयोध्या में बना।
रामलला विराजने की खुशी हम सब मना रहे हैं। रामलला का विराजमान होना, राम राज्य की कल्पना और सनातनी होने का गर्व समूचा भारतवर्ष कर रहा है
ऐसे ही कृपा शंकर अपने घर परिवार के साथ उल्लास, उमंग से भगवान के मनोहर छवि को टी.वी पर देख – देख कर हर्ष मना रहे थे।
अचानक देखते- देखते रोने लगे। अब जब सभी बातों को भूलकर भगवान, अपने मंदिर में आ गए तो क्यों ना मैं भी अपनी पिछली सारी घटना एवं मतभेद को भुलाकर अपने घर लौट जाऊँ।
दुविधा में बैठे-बैठे उनकी आंखों से अश्रुं धार बह निकली। लाल गमछे से पोंछ ही देख थे,कि बहू ने आवाज़ लगाई…. बाबूजी चाय तैयार है आपके लिए लाती हूँ ।
आज पीने का मन नहीं है.. बहू!! भरे गले से कृपा शंकर ने बहु से बोला। नंदिनी घर की इकलौती बहु थी। अपने माँ – पिता सहित पूरे परिवार का बहुत ख्याल रखती थी। नंदिनी ने कहा.. बाबूजी चाय पी लीजिए। तभी तो चाचा – चाची और घर के सभी सदस्यों की अगवानी कर सकेंगे।
क्या कहा?? जैसे कृपा शंकर को कोई खजाना मिल गया हो।
नंदिनी ने कहा हाँ.. आज अभी सभी आ रहे हैं। हम सब मिलकर भगवान श्री राम लाल की पूजा अर्चना करेंगे। चाय की प्याली एक ही घूंट में खत्म कर, कृपा शंकर जल्दी-जल्दी भगवा धोती, कुर्ता, गमछा डाल। देहरी की तरफ निहारने लगे।
कंपकंपाते हाथों से नंदनी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा.. मेरे जीवन की अंतिम साँसों में बसी दुविधा को आज तुमने मिटा दिया ।रामलला तुम्हें सदैव कृपा दृष्टि बनाए रखें।
बाबूजी और नंदिनी को ही सिर्फ मालूम था कि – – तकिये के नीचे लिखा हुआ पत्र क्या था? जो भी हो आज सारा परिवार एकत्रित होकर रामलाल विराजने की खुशी मना रहा है।
कृपा शंकर और दया शंकर दोनों भाई ऐसे मिले जैसे राम भरत मिलाप हो।
🚩🚩जय जय श्री राम 🚩🚩
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈