श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “चेतना तत्व ”।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 29 ☆
☆ चेतना तत्व ☆
प्राण ब्रह्मांड में किसी भी प्रकार की ऊर्जा की मूल इकाई है। यह वह इकाई है जिसे हम देख नहीं सकते हैं, लेकिन सिर्फ अनुभव करते हैं। लेकिन महान ऋषि इसे देख सकते हैं। ऊर्जा उष्ण, बिजली, परमाणु इत्यादि जैसे सकल रूपों में भिन्न हो सकती है लेकिन मूल इकाई या ऊर्जा का सबसे कम संभव रूप प्राण ही है। प्राण कंपन या स्पंदन की आवृत्ति के अनुसार हमारे शरीर के अंदर विभिन्न रूपों में भी कार्य करता है जैसा कि मैंने पहले ही प्राण, अपान आदि के विषय में विस्तार से बताया था, जिनकी हमारे शरीर के अंदर अलग-अलग कार्यक्षमता है।
आशीष ने एक भ्रमित मुद्रा में पूछा, “महोदय, इसका अर्थ है की ऊर्जा के सभी रूप प्राण के विस्तार या अभिव्यक्ति ही हैं। लेकिन प्राण का मूल रूप क्या है? और यह कैसे कार्य करता है? और यह कहाँ से हमारे आस-पास या पृथ्वी पर आता है?”
उत्तर मिला, “प्राण जो हम साँस के माध्यम से शरीर के अंदर लेते हैं वास्तव में वायुमंडल में उपस्थित होता है और आयन (Ions,विद्युत् शक्ति उत्पन्न करनेवाला गतिमान परमाणु) के रूप में बने रहते हैं। हमारे वायुमंडल के ऊपरी भाग में ये प्राण आयन 100-150 वोल्ट प्रति मीटर के आसपास विद्युत वोल्टेज में उपस्थित रहते हैं। प्राण ऊर्जा में दो प्रकार के आयन होते हैं :
1) ऋणात्मक आयन, जो आकार में छोटे और बहुत सक्रिय होते हैं। ये आयन शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा देते हैं। हम श्वास की प्रक्रिया के दौरान वातावरण से इन आयनों का सेवन करते हैं। ये आयन धूल, धुआं, धुंध, गंदगी, आदि से नष्ट हो जाते हैं। इन आयनों का वातावरण से कम होना ही प्रदूषण और वैश्विक तापमान वृद्धि का मुख्य कारण है इन आयनों की उपस्थिति में हम स्वस्थ और अच्छा अनुभव करते हैं।
2) बड़े और कम सक्रिय हैं, इनमे कई परमाणु नाभिक होते हैं। ये छोटे आयनों के संयोजन का एक रूप होते है।
वायुमंडलीय प्राण, ऊर्जा का स्रोत सूर्य की अति उल्लंघन वाली किरणों की प्रकाश रासायनिक (photochemical) प्रतिक्रिया से उत्पन्न कम आवृत्ति की तरंगों (short wave) का विकिरण (radiation) है। प्राण के नकारात्मक आयनों का माध्यमिक स्रोत हमारे सौर मंडल के विभिन्न भागों से आता है। इसके अतरिक्त ये आयन विशेष रूप से समुद्र के पानी में तरंगों से भी उत्पन्न होते हैं।
आशीष कहता है, “ऐसा कहा जाता है कि जब कोई मर जाता है, तो प्राण उसके शरीर को छोड़ देते हैं। इसका अर्थ हुआ की प्राण चेतना का ही एक रूप है, क्योंकि जब व्यक्ति मर जाता है तो वह अपनी चेतना खो देता है”
उत्तर मिला, “यह सामान्य मनुष्यों के लिए बहुत भ्रमित है, लेकिन मैं आपको यह बताने का प्रयास करता हूँ। प्राण से चेतना (consciousness) अलग है। चेतना जागरूकता (awareness) का माप है या हम कह सकते हैं कि जागरूकता चेतना की मूल इकाई है। लेकिन जागरूकता भी प्राण को ईंधन (fuel) के रूप में उपयोग करती है। चेतना दो चीजों पर निर्भर करती है: पहला जागरूकता की तीव्रता या प्रगाढ़ता (intensity) और दूसरा जागरूकता की अवधि (duration) । या अधिक स्पष्ट शब्दों में हम कह सकते हैं कि चेतना प्रकृति का सत्त्विक गुण है जबकि प्राण प्रकृति का राजसिक गुण है और स्थूलता प्रकृति का तमस गुण है। प्राण चेतना से अलग है क्योंकि जब कोई व्यक्ति बेहोश या अचेत होता है तो वह अपने और उसके आस-पास के विषय में सचेत नहीं रहता है, लेकिन वह अभी भी जीवित है और कुछ समय बाद उसकी इंद्रियों में चेतना वापस आ जाती है, जिसका अर्थ है कि प्राण ने उसके शरीर को नहीं छोड़ा था।
दूसरी ओर जब प्राण शरीर छोड़ देता है, तो व्यक्ति मर जाता है, लेकिन योग में कुछ तकनीकें और कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां भी होती हैं, जो शरीर में प्राण के प्रवाह को फिर से सक्रिय कर सकती है और मनुष्य फिर से जीवन पा सकता है जैसे की लक्ष्मण के साथ हुआ था जब इंद्रजीत ने उन पर शक्ति से आक्रमण किया था और उन्हें संजीवनी बूटी द्वारा जीवनदान मिला था।
जबकि आत्मा हमेशा चेतना होती है या सरल शब्दों में कहे तो आत्मा का केवल एक गुण होता है, और यह हमारे सभी दृश्य और अदृश्य ब्रह्मांड की वर्तमान चेतना है, जो हमारे शरीर, मस्तिष्क, इच्छाओं, कर्मों आदि द्वारा सीमित प्रतीत होता है। इसलिए यही कारण है कि हमारी आत्मा अलग-अलग अनुलग्नकों (लगाव) से बंधने की वजह से सीमित चेतना दिखाती है। जब हम सभी अनुलग्नक छोड़ देते हैं, तो हमारी आत्मा की चेतना अपने वास्तविक सार्वभौमिक अनंत रूप में दिखाई देती है और हम स्वतंत्र हो जाते हैं और अनंत में विलय करते हैं। स्पष्ट रूप से व्याख्या करने के लिए एक उदाहरण लेते हैं। यहाँ पर मैं तुम लोगों के साथ बैठा हूँ और मेरे शरीर के अंदर प्राण वायु अपना कार्य कर रही है, और मैं भी अपने विषय में, मेरे विचारों, मेरे आस-पास, आप चारों के प्रति सचेत हूँ। लेकिन जब मैं सो जाऊँगा, सपने में, बाहरी दुनिया के साथ मेरा संबंध कट जाएगा या अधिक सटीक रूप से मेरी चेतना केवल मेरे मस्तिष्क के संस्कारों के अंदर तक ही सीमित हो जायगी, जहाँ से वो चेतना मेरे पिछले कर्मों की छाप से कुछ दृश्य उठा कर मुझे सपने दिखायगी। लेकिन इस स्थिति में भी मेरे शरीर के प्राण और उप-प्राण अभी भी वैसे ही कार्य करते हैं जैसे वह जाग्रत अवस्था में करते हैं, जो कि आसानी से सोते समय मेरी चलती साँसों से अनुभव किया जा सकता है। लेकिन स्वप्न की अवस्था में मेरी चेतना मेरे मस्तिष्क में ही सिकुड़ या सिमट जाएगी। जब कोई मेरे शरीर पर चुटी काटेगा, तो मेरी चेतना मेरे मस्तिष्क से फिर से मेरे शरीर तक फैल जाएगी और मेरी आँखें खुल जायँगी और मुझे अपने शरीर का फिर से अनुभव होने लगेगा, और लगभग उसी समय मेरी चेतना और फैलकर मुझे मेरे आस-पास के वातावरण का भी अनुभव देने लगेगी। जबकि गहरी नींद की अवस्था में मेरी चेतना और भी सिकुड़ कर केवल आत्मा तक ही सीमित हो जायगी।
एक वाक्य में प्राण आत्मा का एकमात्र गुण, ‘चेतना’ का एक वाहन है। अब अंतर स्पष्ट हुआ?”
© आशीष कुमार