डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – बैठ गया जब तेरे पास…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 175 – गीत – बैठ गया जब तेरे पास…
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बैठ गया जब तेरे पास
शंका शूल जाले, बन घास।
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दिन में सोया सपना देखा
अपने बीच खिंची है रेखा
तब बड़ी देर तक मैं रोया
आँसू से ही आनन धोया
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मन बेहद हो गया उदास
बैठ गया जब तेरे पास
शंका शूल जाले बन घास
सपनों ने तोड़ा उपवास।।
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तरस रहा मन देखा तूने
मुरझ रहा मन देखा तूने
जब तुमने उठकर बाँह गही
शंका तब बिल्कुल नहीं रही।
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गाने लगी कंठ की प्यास
बैठ गया जब तेरे पास
शंका शूल जले बन घास
जुड़े सभी टूटे विश्वास।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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