श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 115 – मनोज के दोहे… ☆

1 विधान

विधि का यही विधान है, करते जैसा कर्म।

प्रतिफल जीवन में मिले, जाना हमने मर्म।।

*

2 जहाज

जीवन एक जहाज है, सुखद लगे उस पार।

सद्कर्मों की नदी में, फँसें नहीं मझधार।।

*

3 पलक

पलक पाँवड़े बिछ गए, राम-लला के द्वार।

दर्शन के व्याकुल नयन, पहुँच रहे दरबार।।

*

4 संदूक

पाँच सदी पश्चात यह, आया शुभ दिन आज।

न्यौछावर संदूक हैं, दिखा राम का काज।।

*

5 मरुथल

नदियों का गठजोड़ यह, दिशा दिखाता नेक।

मरुथल में अब हरितमा, उचित कदम है एक।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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