श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 33 ☆
☆ कविता ☆ “इश्क तू कर…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
(सूफी रॅप)
☆
ए बंदेया तू देख इधर
ना जा तू इधर उधर
सुन कान खोल के
जरा ठंडा कर जिगर
मोह माया में है फंसा
दिल को ना दुखी कर
*
जो जो तू समझा
वोह एक कहानी
असलियत समझो तो
है तेरी कुर्बानी
*
वो तुझे चलाते हैं
झूठी रोशनी दिखाते हैं
ना है उनके पास
अल्ला या राम
झुकाना है तुमको
बस यही काम
ख़ुदा तो ख़ुदा है
बाकी सब नाम
नाम से क्या होगा
जब अंदर भरा काम
*
आंखों का तेरा बस
चश्मा उसने बदला है
जो भी सब चलता था
वही सब चलता है
कहेंगे तुझे देख
दुनियां कितनी बदली है
कुछ नहीं बदला
बस तरीक़े तेरे बदले है
*
उस टाइम में भी
झगड़े होते थे
पत्थर से लोग
लड़ाई करते थे
आज तुझे चॉइस है
किससे तुझे मरना है
बंदूक से मरना है या
संदूक में घुटना है
बदलनी है ये सूरत
तो इसका एक इलाज
खोलो प्यार के रास्ते
हो जन्नत का लिहाज़
*
खुद को भी प्यार कर
खुद की भी रिस्पेक्ट कर
उसको भी प्यार कर
उसकी भी रिस्पेक्ट कर
*
बाबा बुलेशाह हो
या अमीर मेरा यार
हो मीरा बाई
या रूमी दर्याकार
हो कबीर या हो
शम्स सूफिकार
इनकी नज़र में
बस प्यार ही प्यार
इश्क़ के बिना
है जिंदगी बीमार
इन्होंने कही
बात असली मेरे यार
*
इश्क़ कर मीरेया
इश्क़ तू कर
चाहे आसमां
या दर्या से कर
फूलों से कर तू
पौधों से कर
इंसान से कर तू
कायनात से कर
जवानी में कर
चाहें बुढ़ापे में कर
इश्क़ से कर मीरेया
इश्क़ तू कर
☆
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈