(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – सुपारी लाखों की)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 258 ☆

? व्यंग्य – सुपारी लाखों की ?

बिदा होते हुये सहज ही किसी भी मेहमान को सुपारी प्रस्तुत किये जाने की परंपरा हमारी संस्कृति में है। बड़े प्रेम से सरौते से काट कर हाथ की गदेली में सुपारी दी ली जाती रही है। कच्ची सुपारी, सिकी सुपारी, खाने से लेकर पूजा अनुष्ठान तक, सुपारी के कई तरह के प्रयोग होते हैं। सुपारी को तांबूल फल की श्रेणी में गिना जाता है। पूजा पाठ में पंडित जी सहंगी सुपारियों से नवग्रह बनाने की क्षमता रखते हैं। विवाह में सोने, चांदी जड़ित सुपारी वर को देने की परंपरा भी हैं। आयुर्वेद में भी सुपारी से कई तरह के रोगों के उपचार किये जाते है। वास्तु विशेषज्ञ भी सुपारी का इस्तेमाल कई सारे उपाय के लिए करते हैं। सुपारी से पान पराग माउथ फ्रेशनर और गुटखा बनाकर करोड़ो के वारे न्यारे हो रहे हैं। सुप्रसिद्ध फिल्मी हीरो इन गुटखों के विज्ञापन करते नजर आते हैं। हर शहर में किसी चौराहे का कोई न कोई पान कार्नर दुनियां भर की चर्चाओ का प्रमुख सेंटर होता है। यहां कान खोलकर खड़ा संवाददाता सरलता से अखबार के सिटी पेज का अगले दिन का पन्ना तैयार कर सकता है। खासकर बोल्ड लेटर में छपने वाले बाक्स न्यूज में तो निश्चित ही किसी न किसी पान सेंटर का ही योगदान होता है। साहित्यिक अभिरुचि के लेखको, कवियों को पान सेंटर कई कहानियों प्लाट मुफ्त ही प्रदान कर देते हैं। कुछ जीवंत प्रेम कथायें भी नुक्कड़ के इन्ही ठेलों के गिर्द रच जाती हैं। सुपारी का पौधा आकर्षक होता है इसकी खेती से वर्षों तक मुनाफा होता है। रींवा में तो सुपारी पर कार्विंग कर तरह तरह की कलाकृतियां बनाई जाती हैं। अस्तु, सुपारी का कारोबार कईयों को रोजगार देता है।

इस तरह की सारी आम लोगों की सुपारी हजारों की ही होती है। किन्तु भाई लोगों की सुपारी लाखों की होती है। जिसमें वास्तविक सुपारी नदारत होती है। वर्चुएल रूप से भाई लोगों के गैंग किसी को उठा लेने के लिये, किसी को उड़ा देने के लिये लाखों की सुपरी लेते हैं। आधी रकम लेकर भाई के हेडक्वार्टर पर डील फाइनल कर दी जाती है। फिर भाई वारंट निकाल देता है। वर्क किसी गुर्गे को एसाईन हो जाता है। और काम निपटते ही  सुपारी की तय शुदा कीमत अदा कर दी जाती है। पोलिस के सायरन बजाती गाड़ियों के चक्कर लगते हैं। घटना स्थल की फोरेंसिक जांच की जाती है। साक्ष्य जुटाने के लिये घटना का पुनः नाट्य रुपांतर किया जाता है। टी वी चैनलों, अखबार के क्राईम रिपोर्टरों को फिर पान सुपारी की गुमटियों, खोंखों पर हो रही सुगबुगाहट से क्लू मिलते हैं। पोलिस के मुखबिर सुपारी चबाते खबरें तलाशते हैं। चंद सिक्कों की फिजिकल सुपारी लाखों की वर्चुएल सुपारी के अपराधों के राज खोलने में बड़ी भूमिका निभाती है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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