श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 116 – मनोज के दोहे… ☆
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1 रतजगा
सैनिक करता रतजगा, सीमा पर है आज।
दो तरफा दुश्मन खड़े, खतरे में है ताज।।
2 प्रहरी
उत्तर में प्रहरी बना, खड़ा हिमालय राज।
दक्षिण में चहुँ ओर से, सागर पर है नाज।।
3 मलीन
मुख-मलीन मत कर प्रिये,चल नव देख प्रभात।
जीवन में दुख-सुख सभी, घिर आते अनुपात।।
4 उमंग
पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।
किला सिंहगढ़ का यहाँ, विजयी-शिवा तरंग।।
5 चुपचाप
महानगर में आ गए, हम फिर से चुपचाप।
देख रहे बहुमंजिला, गगन चुंबकी नाप ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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