सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार।आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – गोपालदास और श्री कृष्ण।)
मेरी डायरी के पन्ने से… – गोपालदास और श्री कृष्ण
एक राहगीर सड़क पर चल रहा था। अभी दोपहर का समय था। धूप सिर पर थी। पर ठंडी के दिन थे तो चलने वाले राहगीर को कष्ट नहीं हो रहा था। सड़क भी अच्छी और नई बनी हुई थी। खास लोगों का आना -जाना न हो रहा था। एकाध गाड़ी कभी पास से गुज़र जाती अन्यथा सड़क सूनी ही थी। राहगीर को अपने गाँव पहुँचना था। वह भी गति बनाकर चल रहा था।
इतने में उसके पास आकर एक गाड़ी रुकी। गाड़ी चालक ने मधुर स्वर में राहगीर से गाड़ी में बैठने को कहा। वह बोला – आओ मित्र गाड़ी में बैठो । कहाँ जाना है? मैं उतार दूँगा वहाँ। उसके मुख पर मुस्कान थी।
राहगीर थोड़ा हक्का-बक्का रह गया। फिर संभलकर बोला – नहीं साहब, पूछने के लिए शुक्रिया। मैं थोड़ी देर में पहुँच जाऊँगा। पास ही है मेरा गाँव।
पर चालक अपनी ज़िद पर अड़ा रहा बोला
– अरे आ जाओ दोस्त, मैं द्वारिका तक जा रहा हूँ। बीच में तुम्हें जहाँ जाना हो उतार दूँगा। घबराओ नहीं यहाँ से पोरबंदर अभी पंद्रह किलोमीटर है। आओ बैठो।
उसने अब दरवाज़ा खोल दिया। राहगीर सिमटकर सीट पर बैठ गया। अब दोनों साथ बैठे तो गाड़ी चल पड़ी। राहगीर ने गाड़ी में बैठते ही साथ कहा “कृष्णा कृष्णा। “
चालक ने पूछा – तुम्हारा नाम क्या है मित्र?
– गोपालदास।
– कहाँ जा रहे हो ?
– पोरबंदर
– सुदामा के गाँव?
– जी हमारा पूरा कुनबा आज कई वर्षों से यहीं रहता आ रहा है।
– आप द्वारिका में रहते हैं?
– नहीं, कभी रहा करता था। सुना है अब पनडुब्बियों में बिठाकर हज़ारों वर्ष पुराना कृष्ण नगरी की समुंदर में सैर करने की व्यवस्था की जा रही है। बस वही सब देखने का उत्साह है।
– हाँ साहब सुना है कि समुंदर के नीचे स्वर्ण नगरी द्वारका मिली है।
– पोरबंदर अभी बीस – पच्चीस मिनिट में पहुँच जाएँगे। तुमने बैठते ही साथ कृष्णा का नाम क्यों लिया?
– वे हमारे आराध्य हैं साहब । हम सब उसी को पूजते हैं।
– पर वह तो चोर था, मक्खन चुराता था, गोपियों के मटके फोड़ता था। कालिया को उसने मारा था फिर अपने मामा कंस को भी मारा। साथ में महाभारत के भीषण युद्ध में भी रथ पर सवार सारी लड़ाई का खेल देखता रहा। उसके तो कई अवगुण थे।
– साहब गाड़ी रोको।
– क्यों ? क्या हुआ?
– हम अपने आराध्य के विरुद्ध एक शब्द नहीं सुन सकते। मुझे उतार दीजिए साहब। मैं उसी का मनन करते हुए घर पहुँच जाऊँगा।
– अरे क्षमा करो मित्र ! तुम्हें आहत करना मेरा उद्देश्य न था। मैं तो उसके अवगुणों के बारे में ही अधिक जानता हूँ।
– तो गलत जानते हो। राहगीर क्रोधित होकर बोला। – कृष्ण पालनहार हैं। संसार से बुराइयों को दूर करने के लिए ही उनका जन्म हुआ था। एक बार गीता पढ़ लो साहब सकारात्मक सोच पैदा हो जाएगी। फिर कृष्ण के अवगुण भूल जाओगे। आप गाड़ी वाले अधूरा ज्ञान रखते हैं। सच क्या है यह भी तो जानिए।
– वाह! हज़ारों साल बाद भी कृष्ण के प्रति तुम्हारी आस्था देखकर आनंद आया। क्षमा करो मित्र मैंने अनजाने में तुम्हें आहत किया।
अब उसने गाड़ी रास्ते के किनारे लगाई और बोला – लो बातों – बातों में तुम्हारा गाँव आ गया।
– धन्यवाद साहब। आपने अपना नाम नहीं बताया?
– मेरा नाम कृष्ण है।
राहगीर गाड़ी से उतरने लगा बोला – कृष्ण नाम है और तब भी कृष्ण के गुणों के बारे में नहीं जानते? आधुनिक दुनिया के पढ़े -लिखे लोग कृष्ण से कितने दूर हैं! गीता अवश्य पढ़िएगा।
गाड़ी से उतरकर दरवाज़ा बंद करने के लिए जब वह मुड़ा तो वहाँ कोई गाड़ी न थी। दूर दूर तक कोई दिखाई न दिया। न गाड़ी के पहियों के निशान थे। हाँ उस स्थान पर मोर का एक पंख अवश्य पड़ा था।
राहगीर गोपाल दास अपने घुटनों पर बैठ गया। मोर पंख को माथे से लगाकर फफक- -फफककर वह रोने लगा।
न जाने किस रूप में नारायण मिल जाएँ।
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