श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “फिर भरमाया मौसम ने…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 41 ☆ फिर भरमाया मौसम ने… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

लो बसंत में

फिर भरमाया मौसम ने।

*

अभी-अभी तो धूप

ज़रा इठलाई थी

हवा ख़ुशी में

थोड़ी सी पगलाई थी,

*

असमय बादल

राग सुनाया मौसम ने।

*

नदी हिलोरों पर बैठी

कुछ गाती थी

मनुहारों की डोर

पकड़ इतराती थी

*

कर दी मैली

कंचन काया मौसम ने।

*

अमराई की देह

तनिक बौराया मन

कोयल रही अलाप

सुरों में अपनापन,

*

घर ठिठुरन का

फिर सुलगाया मौसम ने। 

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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