श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय रचना  “आज के संदर्भ में – षड्यंत्रों का दौर…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #217 ☆

☆ कुछ मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

[1]

अपेक्षाएँ ये

दुखों की खान हैं

अपेक्षाएँ

हवाई मिष्ठान्न हैं

बीज इसमें हैं

निराशा के छिपे,

छीन लेती ये

स्वयं का मान हैं।

[2]

अब नहीं आता, किसी का फोन है

चुप्पियों से घिरे, विचलित मौन हैं

स्वयं बतियाते, स्वयं ही पूछते,

सुख-दुखों का,अनुभवी यह कौन है।

[3]

है कहाँ सिद्धांत नीति, अब कहाँ आदर्श है

चल रहा है झूठ का ही, झूठ से संघर्ष है

ओढ़ सच का आवरण, है ध्येय केवल एक ही

बस हमीं हम ही रहें, यह एक ही निष्कर्ष है।

[4]

पहले जैसे शेखचिल्ली के, सपनों से दिन रहे नही

जाग्रत जनता बाँच रही है, सब के खाते और बही

मुफ्त रेवड़ीऔर शिगूफे, समझ रहा है जनमानस,

हुक्कामों से अब हिसाब, माँगेंगे वोटर सही-सही।

 ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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