श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 34 ☆
☆ कविता ☆ “आत्मज्ञान…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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ओये इश्क कर मीरेया
सपणे इश्क के ना कर
नींद होवे तो सपणे होवे
नींद भगावे सो आत्मज्ञान होवे
*
वे मीर तू होवे कोण
दादा बुआ पड़ोसी जो बनावे
ख़ुद को देख करीब से मीरेया
सच में तू कौन होवे
*
क्या सही क्या ग़लत
कोई दूसरा क्या बतावे
तू भी इंसान ख़ुदा का बनाया
तुझे क्या चाहिए तुझे मालूम होवे
*
भीड़ ने दी पहचान तुझे
उससे तू भला क्या पावे
सदियों से पहन कर कपड़ा
अंदर से तो तू नंगा होवे
*
क्या बुरा और क्या ज़रूरी
पता जब इनका मिल जावे
झुंड से निकलकर ख़ुद को पाना
आत्मज्ञान आत्मज्ञान और क्या होवे
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈