प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “बच्चे..” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बच्चे…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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हर देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं बच्चे
कल के स्वरूप की छुपी अभिव्यक्ति हैं बच्चे ॥
“कल देश कैसा ही सपने उभारिये
अनुरूप उसके ही कदम अपने संवारिये।
जैसा इन्हें बनायेंगे, वैसा ये बनेंगे
वातावरण जो पायेंगे वैसे ही ढलेंगे ॥
पौधों की भाँति होते हैं कोमल, सरल, सच्चे।
हर देश की सबसे बड़ी संपत्ति हैं बच्चे ॥1॥
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इनको सहेजिये इन्हें बढ़ना सिखाइये
पुस्तक ही नहीं जिन्दगी पढ़ना सिखाइये।
शिक्षा सही न मिली तो ये जायेंगे बिगड़
अपराध की दुनिया में पड़ेंगे ये लड़-झगड़ ॥
इनमें अभी समझ नहीं, अनुभव के हैं कच्चे
हर देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं बच्चे ॥ 2 ॥
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इनके विकास की है बड़ी जिम्मेदारियाँ
शासन-समाज को सही करती तैयारियाँ।
शालाएँ हो, सुविधाएँ हो, अवसर विकास के
सद्भाव हों, सद्बुद्धि हो, साधन प्रकाश के ॥
परिवेश मिले सुखद जहाँ ढल सकें अच्छे
हर देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं बच्चे ॥3॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈