श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# कलम #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 165 ☆
☆ # कलम # ☆
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उसने मुझे कलम थमाई
लिखने की कला सिखाई
हर शब्द कीमती है
शब्दों की गरिमा समझाई
तुम कभी –
सत्य का पाथ ना छोड़ना
कमजोर का हाथ ना छोड़ना
बेबस, लाचार, असहाय का
राह में साथ ना छोड़ना
वो बात लिखो-
जो तुम्हें कचोटती हो
जो तुम्हें झंझोड़ती हो
जो तुम्हारे शरीर ही नहीं
आत्मा को निचोड़ती हो
मैंने उत्साह में
लिखने की चाह में
लिखा-
बढ़ती मंहगाई पर
दिग्भ्रमित तरुणाई पर
खोखले वादों पर
झूठे इरादों पर
भूखे की रोटी पर
निर्धन की लंगोटी पर
कमजोर के अन्याय पर
बिके हुए न्याय पर
सियासत के मोहरों पर
हर पल बदलते चेहरों पर
रूपये के खेल पर
बढ़ते बेढ़ंगे मेल पर
प्रिंट मीडिया की बदहाली पर
पेड मीडिया की दलाली पर
और
उसे जब अपनी रिपोर्ट थमाई
पढ़कर उसके चेहरे पर
व्यंग्यात्मक हंसी आई
वो बोला –
यह सब कहानी
लगती सच्ची है
पढ़ने में अच्छी है
पर छप नही सकती है
उसके माथे पर बूंदें उभर आई
उसकी जिव्हा लड़खड़ाई
उसकी आंखों में भय दिखने लगा
उसकी आवाज थी भर्राई
उसने मेरी कलम छीन ली
और बाहर की राह दिखाई
मुझे आज तक
मेरी रचना में
क्या कमी थी
समझ नहीं आई /
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© श्याम खापर्डे
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