डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – शपथ है…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 177 – गीत – शपथ है…
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शपथ है उन सात फेरों की
है शपथ संझा सबेरों की
है साक्षी आकाश, मत तोड़ना विश्वास।
हृदय मेरे पास
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याद है वह दिन तुम्हें, जाँचे बिना ही ब्याह लाया था
अब कहूँ क्या और ज्यादा, मैं समुन्दर थाह लाया था
रतन से ज्यादा तुम्हें पाया, जिन्दगी के गीत सा गाया
मत तोड़ना विश्वास, साक्षी आकाश।
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देवता की बात छोड़ो, आदमी से भूल होती है
निर्मली आकाश के भी, पाश में कुछ धूल होती है
धूल को तुमने हटाया है, रंग मेरा निखर आया है।
मत तोड़ना विश्वास ,साक्षी आकाश।
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कवि हृदय को बाँचना भी, एक मुश्किल काम होता है
आँख उसकी है भिखारिन, इसलिये बदनाम होता है
जो सजाई फूल क्यारी है, सम्मिलित खुशबू हमारी है
मत तोड़ना विश्वास, साक्षी आकाश।
मैं हृदय की प्यास।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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