श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। ई -अभिव्यक्ति में आज से प्रत्येक सोमवार आप आत्मसात कर सकेंगे एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है महाकोशल क्षेत्र के एक लोकप्रिय सौम्य, गरिमामय व्यक्तित्व के धनी, प्रखर कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक व जनेता – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी”।)
☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆
☆ “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
(सौम्य, गरिमामय व्यक्तित्व के धनी, प्रखर कवि लेखक व संपादक)
कवि, पत्रकार और राजनेता के रूप में समान लोकप्रियता के धनी पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जनसभाओं में प्रतिष्ठित राजनेताओं और साहित्यकारों के बीच में से श्रोताओं की सहज श्रद्धा और लोकप्रियता के एक मात्र पात्र बनने की सामर्थ्य रखते थे। सात बार जबलपुर नगर निगम के महापौर चुने गए थे, लम्बे समय राज्यसभा सांसद रहे। वे ‘प्रहरी’ पत्रिका के ऐसे सफल सम्पादक थे जिन्होंने देश को समर्थ और लोकप्रिय हरिशंकर परसाई जैसा व्यंग्यकार दिया, परसाई जी की पहली रचना और पहला कालम ‘नर्मदा के तट से’ प्रहरी से ही प्रारंभ हुआ। कवि के रूप में आदरणीय तिवारी जी जन जन के बीच लोकप्रिय थे। राजनीति और साहित्य के पारस्परिक संबंधों के बारे में उनका कहना था…
“जब राजनीति पथभ्रष्ट होती है तब साहित्य विद्रोही हो जाता है”
1942 के जन आंदोलन के समय पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी जबलपुर नगर कांग्रेस के अध्यक्ष थे, और पूरे देश में यह अकेला शहर था जहां सेना के जवान अपनी बैरकों से बाहर आ गए थे,यह तिवारी जी के समर्थ नेतृत्व का ही परिणाम था कि 1942 में जबलपुर का अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन समूचे महाकौशल में जन जाग्रति का वाहक बनकर फैला। सन् 1942 में गिरफ्तार हो उन्हें जेल यात्रा करनी पड़ी,जेल में भी उनका समय व्यर्थ नहीं गया यहीं उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का अध्ययन मनन किया और गीतांजलि का अनु -गायन जैसा उनके द्वारा संभव हुआ।आज भी हिन्दी में प्रकाशित कोई भी अनुवाद उसके समक्ष बेसुरा प्रतीत होता है, गीतांजलि अनु गायन के प्रकाशित होते ही उनकी यश-कीर्ति नगर और राज्य की सीमा लांघकर सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में फैली…
‘दिखते हैं प्रभु कहीं,
यहाँ नहीं यहाँ नहीं,
फिर कहाँ? अरे वहाँ,
जहां कि वह किसान दीन,
वसनहीन तन मलीन,
जोतता कड़ी जमीन,
प्रभु वहीं कि जहां पर
वह मजूर करता है
चोटों से पत्थर को चूर’
प्राण पूजा’ और ‘प्राण धारा’ उनके मूल कविता संग्रह प्रकाशित हुए थे,’तुम कहां चले गए’ शोक कविताओं का लघु संग्रह है, ‘जब यादें उभर आतीं हैं’ उनके संस्मरणात्मक वैयक्तिक निबंधों का संग्रह है, ‘गांधी जी की कहानी’ गांधी के महान व्यक्तित्व को सरल भाषा में किशोरोपयोगी बनाने का प्रयास था। कथा वार्ता उनकी कथात्मक एवं समीक्षात्मक रचनाओं का संग्रह है। श्री तिवारी जी की ‘प्रहरी’ पत्रिका में प्रकाशित ‘हाथों के मुख से’ और ‘संजय के पत्र’ , ‘हमारी तुमसे और तुम्हारी हमसे’ जैसे स्तंभों में छपी सेंकड़ों पृष्ठों की सामग्री हिंदी साहित्य के क्षेत्र में रचनात्मक योगदान के रूप में याद रखी जाएगी।
एक पूरी की पूरी साहित्यिक पीढ़ी जिसमें सर्वश्री केशव पाठक, रामानुज लाल श्रीवास्तव, सुभद्रा कुमारी चौहान, नर्मदा प्रसाद खरे, हरिशंकर परसाई, रामेश्वर गुरू, जैसे महान साहित्यकार उनकी प्रहरी पत्रिका में प्रकाशित हुए। राजनेता और पत्रकार से भिन्न उनका साहित्यिक व्यक्तित्व सर्वोपरि था जो उनके इन दोनों रूपों को सहज ही आच्छादित किए रहता था, और मंच से बोलते हुए तिवारी जी के भाषण और भंगिमा में इस व्यक्तित्व का इतना अधिक प्रभाव रहता था कि उनके साहित्यिक श्रोताओं को तिवारी जी की काव्य पंक्तियां याद आने लगतीं थीं। लोग बताते हैं कि होली जैसे जन पर्व के अवसर पर या शरद पूर्णिमा के कवि सम्मेलन में उनकी मधुर संवेदनशील वाणी सहज ही गूंज जाती थी….
‘फूल ने पांवड़े बिछाए हैं,
कौन ये मेहमान आये हैं ‘
© जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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