श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा पैती”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 182  ☆

☆ लघुकथा ❤️ पैती ❤️

सनातन धर्म के अनुसार कुश  को साफ सुथरा कर मंत्र उच्चारण कर उसे छल्ले नुमा अंगूठी के रूप में बनाया जाना ही पैती कहलाता है। जिसे हर पूजा पाठ में सबसे पहले पंडित जी द्वारा, उंगली पर पहनाया जाता है और इसके बाद ही पूजन का कार्य चाहे, कोई भी संस्कार हो किया जाता है।

सुधा और हरीश यूँ तो जीवन में किसी प्रकार की कोई चीज की कमी नहीं थीं। धन-धान्य और सुखी -परिवार से समृद्ध घर- कारोबार और अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे।

सृष्टि की रचना कब कहाँ किस और मोड़ लेती है कहा नहीं जाता।

सुखद वैवाहिक जीवन के कई वर्षों के बीत जाने पर भी संतान की इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी।

कहते देर नहीं लगी की कोई दोष होगा। घर की शांति पूजा – पाठ नाना प्रकार के उपाय करते-करते जीवन आगे बढ़ रहा था। कहीं ना कहीं मन में टीस  बनी थी।

क्योंकि सांसारिक जीवन में सबसे पहले.. अरे आपके कितने… बाल गोपाल और कैसे हैं? समाज में यही सवाल सबसे पहले पूछा जाता है।

फिर भी अपने खुशहाल जिंदगी में मस्त दोस्तों से मेलजोल अपनों से मुलाकात और रोजमर्रा की बातें चलती जा रही थी।

समय पंख लगाकर उड़ता चला जा रहा था। कहते हैं देर होती है पर अंधेर नहीं। आज सुधा का घर फूलों की सजावट से महक रहा था।

चारों तरफ निमंत्रण से घर में सभी मेहमान आए थे। सभी को पता चला कि आज कुछ खास कार्यक्रम है।

पीले फूलों की पट्टी और उस पर छल्ले नुमा कुश से बने…. नाम लिखा था पैती।

नए जोड़ों की तरह दोनों का रूप निखर रहा था। मंत्र उच्चारण आरंभ हुआ। गोद में नन्हा सा बालक रंग तो बिल्कुल भी मेल नहीं खा रहा था। पर नाक नक्श और सुंदर कपड़ों से सजे बच्चों को लेकर सुधा छम छम करती निकली।

फूलों की बरसात होने लगी सभी को समझते देर ना लगी कि सुधा और हरीश ने किसी अनाथ बच्चों को गोद लेकर उसे अपने पवित्र घर मंदिर और अपने हाथों की पैती बना लिया।

जितने लोग उतनी बातें परंतु पैती आज अपने मम्मी- पापा के हाथों में पवित्र और निर्मल दिखाई दे रहा था।

सुधा की सुंदरता बच्चे के साथ देव लोक में अप्सरा की तरह दिखाई दे रही थी। ममता और वात्सल्य से गदगद वह सुर्ख लाल छुई-मुई लग रही थी।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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