श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “मरतु प्यास पिंजरा पयो…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 184 ☆ मरतु प्यास पिंजरा पयो… ☆
किसी से बदला मत लो उसे बदल दो बहुत सुंदर, सकारात्मक विचार है। कर्म का फल अवश्य सम्भावी है, ये बात गीता में कही गयी है और इसी से प्रेरित होकर लोग निरन्तर कर्म में जुटे रहते हैं; बिना फल की आशा किए। उम्मीद न रखना सही है किन्तु हमारे कार्यों का परिणाम क्या होगा ? ये चिन्तन न करना किस हद तक जायज माना जा सकता है।
अक्सर लोग ये कहते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं कि मैंने सब कुछ सही किया था, पर लोगों का सहयोग नहीं मिला जिससे सुखद परिणाम नहीं आ सके। क्या इस बात का मूल्यांकन नहीं होना चाहिए कि लोग कुछ दिनों में ही दूर हो रहे हैं, क्या सभी स्वार्थी हैं या जिस इच्छा से वे जुड़े वो पूरी नहीं हो सकती इसलिए मार्ग बदलना एकमात्र उपाय बचता है।
कारण चाहे कुछ भी हो पर इतना तो निश्चित है कि सही योजना द्वारा ही लक्ष्य मिलेगा। केवल परिश्रम किसी परिणाम को सुखद नहीं बना सकता उसके लिए सही राह व श्रेष्ठ विचारों की आवश्यकता होती है।
बुजुर्गों ने सही कहा है, संगत और पंगत में सोच समझ के बैठना चाहिए। जिसके साथ आप रहते हो उसके विचारों का असर होने लगता है यदि वो अच्छा है, तब तो आप का भविष्य उज्ज्वल है, अन्यथा कोयले की संगत हो और कालिख न लगे ये संभव नहीं।
इसी तरह जिन लोगों के साथ आपका खान- पान, उठना – बैठना हो यदि वे निरामिष प्रवत्ति के हैं तो आपको वैसा होने में देर नहीं लगेगी। कहा भी गया है जैसा होवे अन्न वैसा होवे मन।
मन यदि आपके बस में नहीं रहा तो कभी भी उन्नति के रास्ते नहीं खुलेंगे। क्योंकि सब कुछ तो मन से नियंत्रित होता है। मन के जीते जीत है मन के हारे हार।
इस सब पर विजय केवल अच्छे साहित्य के पठन- पाठन से ही पायी जा सकती है क्योंकि जैसी संगत वैसी रंगत।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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