श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 104 ☆
☆ ग़ज़ल – कोई जो दे रहा है इंसानी पैगाम दुनिया को ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
[1]
हम रहें न रहें यह सिलसिला चलता रहे।
कोई तोड़े नहीं फूल हर खिला चलता रहे।।
[2]
गर चल रहा है कुछ भी गलत कंही पर।
रोकने को उसे यह जलजला चलता रहे।।
[3]
कोई जो दे रहा है इंसानी पैगाम दुनिया को।
फांसी बेखौफ कयामत तक भला चलता रहे।।
[4]
कोशिश आदमी की भी कभी कम न हों।
अंदर उसके यह पुरजोर वलवला चलता रहे।।
[5]
यह सब बात ठीक हैं लेकिन ये भी है जरूरी।
बढ़े जिससे नफ़रत नहीं वह गिला चलता रहे।।
[6]
दर्द भी सबका ही सबको बराबर महसूस हो।
नहीं कोई ज़ख्म यूं छिला खुला चलता रहे।।
[7]
कोई आग न लगाए बस्ती में रोटी सेंकने को।
गर जले तो भी हर इक घर जला चलता रहे।।
[8]
दुनिया जलाने वाले इस दिलजले को कह दो।
हो ये कोशिश नहीं कोई दिलजला चलता रहे।।
[9]
हंस ये दुनिया बन जाएगी जन्नत जमीं पर ही।
गर सबका बस दिल से दिल मिला चलता रहे।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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