श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

☆ कहाँ गए वे लोग # 2 ☆

डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

(24.10.38- 27.02.24)

यादों में सुमित्र जी

स्वयं की यश-कीर्ति बढ़ाने, स्वयं को स्थापित करने, पुरस्कार-सम्मान प्राप्त करने के प्रयत्न में तो सभी लगे रहते हैं किंतु अपने मित्रों को, आने वाली पीढ़ी को निःस्वार्थ प्रोत्साहित करने, उनके कार्य में सुधार करने, उनको उचित मार्गदर्शन देने के लिए अपना समय और शक्ति खर्च करने वाले लोग बिरले ही होते हैं। वरिष्ठ शिक्षाविद्, पत्रकार, साहित्यकार डॉ.राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ऐसे ही बिरले लोगों में से एक थे। डॉ.”सुमित्र” ने श्रम और साधना से न सिर्फ स्वयं “सिद्धि” प्राप्त की वरन प्रेरणा और मार्गदर्शन देकर न जाने कितने लोगों को गद्य-पद्य लेखन में पारंगत कर प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंचाया। मुझे याद है जब मैं कक्षा दसवीं का छात्र था तब एक कविता लिखकर उसे प्रकाशित कराने नवीन दुनिया प्रेस गया था। “सुमित्र जी” ने मेरी कविता प्रकाशित कर मुझे और और लिखने की प्रेरणा दी थी। 50 वर्ष पूर्व “सुमित्र जी” से वह मेरा पहला परिचय था। उन दिनों और उसके बाद भी सुमित्र जी के पास पहुँच कर उनका समय बर्बाद करने वाला मैं अकेला नहीं था, मुझ जैसे अनेक लोग थे, किन्तु सुमित्र जी सबसे बहुत आत्मीयता से मिलते उन्हें पर्याप्त समय देते। मुझे लगता है कि यदि सुमित्र जी स्वार्थी होते, उन्होंने नई पीढ़ी को प्रोत्साहित करने में अपने जीवन का कीमती समय खर्च न करके उसका उपयोग सिर्फ  स्वयं के लिए किया होता तो शायद उन्होंने लिखने-पढ़ने का जितना काम अब तक किया है उससे कहीं दस गुना ज्यादा कर लिया होता, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि वे “सुमित्र” हैं और अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो सम्भवतः इतनी संख्या में पढ़ने-लिखने वाले लोग तैयार न होते। साहित्यकारों की नई पीढ़ी तैयार करने में जितना योगदान सुमित्र जी का है उतना उनके समकालीन साहित्यकारों में शायद ही किसी का हो।

हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, पत्रकारिता एवं शिक्षण में पत्रोपाधि प्राप्त करके सुमित्र जी ने पी.एच डी. की उपाधि प्राप्त की। डॉ सुमित्र जी ने अपना जीवन स्कूल शिक्षक के रूप में प्रारम्भ किया फिर खालसा कॉलेज में अध्यापन किया। उन्होंने दैनिक नवीन दुनिया में संपादन कार्य कर पत्रकारिता में यश-कीर्ति प्राप्त की। वे दैनिक जयलोक के सलाहकार संपादक थे, पत्रिका “सनाढ्य संगम” के परामर्शदाता थे। उन्होंने अपने संपादन से अनेक पुस्तकों-स्मारिकाओं को स्मरणीय-संग्रहणीय बना दिया। वे शासन द्वारा अधिमान्य वरिष्ठ पत्रकार माने जाते थे। डॉ.सुमित्र ने अनेक छात्र-छात्राओं को शोध कार्य हेतु सहयोग एवं परामर्श प्रदान किया।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त वि वि के अकादमिक सलाहकार एवं कोयला व खान मंत्रालय हिंदी सलाहकार समिति तथा आकाशवाणी सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था “मित्रसंघ” के संस्थापक सदस्य भी रहे हैं उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में मित्रसंघ ने बहुत यश कमाया था। देश भर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.सुमित्र की सैकड़ों गद्य-पद्य रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। उनकी रचनाओं, आलेखों, रेडियो रूपकों का प्रसारण आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से  जब-तब होता रहता था। डॉ. सुमित्र की संभावनाओं की फसल, यादों के नागपाश (काव्य संकलन), बढ़त जात उजियारो (बुन्देली काव्य), खूंटे से बंधी गाय-गाय से बंधी स्त्री (व्यंग्य संग्रह) सहित काव्य, कथा, चिंतन परक गद्य निबंध, रेडियो रूपक, व्यंग्य एवं उपन्यास सहित 40 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। भारत भारती, श्रेष्ठ गीतकार एवं शंकराचार्य पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित-अलंकृत डॉ.सुमित्र को श्रेष्ठ साहित्य सृजन पर साहित्य दिवाकर, साहित्य मनीषी, साहित्य श्री, साहित्य भूषण, साहित्य महोपाध्याय, पत्रकार प्रवर, विद्यासागर (डी.लिट्.), व्याख्यान विशारद, हिंदी रत्न, साहित्य प्रवीण, साहित्य शिरोमणि, साहित्य सुधाकर आदि सम्मान/ उपाधियां प्राप्त हो चुकी हैं। सुमित्र जी ने साहित्य समारोहों में शामिल होने न्यूयार्क (अमेरिका), इंग्लैंड, रूस आदि देशों की यात्राएं कीं थीं और सम्मानित होकर नगर का गौरव बढ़ाया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने डॉ. सुमित्र के व्यक्तित्व-कृतित्व पर आलेख प्रकाशित किये गये हैं। देश के अनेक छोटे-बड़े नगरों में उन्हें सम्मानित-अलंकृत किया गया था। वे पाथेय संस्था और पाथेय प्रकाशन के संस्थापक-निदेशक रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाथेय द्वारा अब तक स्थानीय एवं देश-प्रदेश के साहित्यकारों की 700 से अधिक कृतियों का प्रकाशन किया जा चुका है जो एक कीर्तिमान है। डॉ.राजकुमार तिवारी “सुमित्र” जी की धर्म पत्नी स्मृति शेष डॉ.गायत्री तिवारी समर्पित शिक्षिका और श्रेष्ठ कथाकार थीं। उनके सुपुत्र डॉ. हर्ष तिवारी  अपने यू ट्यूब चैनल “डायनेमिक संवाद” के माध्यम से साहित्य, कला, संस्कृति और सेवा में रत लोगों को प्रभावशाली ढंग से समाज के सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं।

अपने सदव्यवहार, आशीष वचनों, शुभकामनाओं और सहयोग से लोगों के ह्रदय में बसने वाले डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” जी हम सबको छोड़कर 27 फरवरी को अनंत यात्रा की तरफ चले गए। ईश्वर अपने चरणों में उनको स्थान दे। विनम्र श्रद्धांजलि….

© प्रतुल श्रीवास्तव

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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