श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “नन्हीं चिड़िया…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 119 – नन्हीं चिड़िया… ☆
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मैं कुर्सी पर बैठकर, देख रहा परिदृश्य।
मन संवेदित हो गया, मुझे भा गया दृश्य।।
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नन्हीं चिड़िया डोलती, शयन कक्ष में रोज।
चीं-चीं करती घूमती, कुछ करती थी खोज।।
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चीं-चीं कर चूजे उन्हें, नित देते संदेश।
मम्मी-पापा कुछ करो, क्यों सहते हो क्लेश।।
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नीड़ बना था डाल पर, जहाँ न पत्ते फूल।
झुलसाती गर्मी रही, जैसे तीक्ष्ण त्रिशूल।।
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वातायन से झाँककर, देखा कमरा कूल।
ठंडक उसको भा गयी, हल खोजा अनुकूल।।
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कूलर से खस ले उड़ी, वह नन्हीं सी जान।
तेज तपन से थी विकल, वह अतिशय हैरान।।
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पहुँच डाल उसने बुना, खस-तृण युक्त मकान।
ग्रीष्म ऋतु में मिल गया, लू से उसे निदान।।
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सब में यह संवेदना, प्रभु ने भरी अथाह।
बोली भाषा अलग पर, सुख की सबको चाह।।
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कौन कष्ट कब चाहता, जग में जीव जहान।
सुविधायें सब चाहते, पशु- पक्षी इन्सान।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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