श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “एक गीत वसंत…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 43 ☆ एक गीत वसंत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
पीत वसन हुई धरा
और मौसम हल्दिया
किसने आकर गाल पर
रँग वसंती मल दिया।
आम बौराया फिरे
गंध महुए से चुए
वन के कारोबार सारे
टेसू-सेमल के हुए
बैठ कोयल डाल पर
गा रही पिया-पिया।
स्नेह हरियाली लिए
खेत आँचल पसारे
पहन स्वर्णिम बालियाँ
रूप धरती सँवारे
बाँध सपने आँख से
प्रीति ने मन छू लिया।
तान बैठा चँदोबा
मस्तियों की ले गुलाल
आ गया मनचला फागुन
बाँटते सुख के रुमाल
बहकी-बहकी हवा ने
गंध से मुँह धो लिया ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
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