श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 37 ☆
☆ कविता ☆ “इश्क़…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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इश्क़ को कब समझोगे
अपने आप से कितना उलझोगे
असीमित को और कितना सीमित करोगे
जिंदगी का और कितना इंतज़ार करोगे
ये न कोई करार
न ये कोई व्यवहार
ये न सिर्फ़ इजहार
न ये होना फरार
ये वो शरार-ए-इंसानियत
ये वो अरार-ए-शब
ये वो जुबां-ए-कायनात
ये वो दास्तां-ए-हयात
ये वो ज़ुल्फों की छांव
या हो दिल की नाव
ये वो खयालों की हवा
या हो लफ्जों की दुआ
ये कभी हाथ में आता है
कभी आंखों में सिमटता है
ये कभी गालों पे खिलता है
कभी बस मन में ही बसता है
इससे अनदेखा न करना
कभी इससे दूर न जाना
ये वो अमृत है
जिससे कभी होंठ न चुराना…
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈