डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा थाप। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 136 ☆

☆ लघुकथा – थाप ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

दिन भर मशीन की तरह वह एक के बाद एक घर के काम निपटाती जा रही थी। उसका चेहरा भावहीन था, सबसे बातचीत भले ही कर रही थी पर आवाज में कुछ उदासी थी। जैसे मन ही मन झुंझला रही हो। उसके छोटे भाई की शादी थी। घर में हँसी -मजाक चल रहा था लेकिन वह उसमें शामिल नहीं हो रही थी, शायद वह वहाँ रहना ही नहीं चाहती थी।‘कुमुद ऐसी तो नहीं थी, क्या हो गया इसे?’ मैंने उसकी अविवाहित बड़ी बहन से पूछा।‘अरे कोई बात नहीं है, बहुत मूडी है‘ कहकर उसने बात टाल दी। मुझे यह बात खटक रही थी कि शादी लायक दो बड़ी बहनों के रहते छोटे भाई की शादी की जा रही है। कहीं कुमुद की उदासी का यही तो कारण नहीं? लड़कियाँ खुद ही शादी करना ना चाहें तो बात अलग है पर जानबूझकर उनकी उपेक्षा करना? खैर छोड़ो,दूसरे के फटे में पैर क्यों  अड़ाना।

शादी के घर में रिश्तेदारों का जमावड़ा था। महिला संगीत चल रहा था और साथ में महिलाओं की खुसपुसाहट भी – ‘जवान बहनें बिनब्याही घर में बैठी हैं और छोटे भाई की शादी कर रहे हैं माँ–बाप। बड़ी तो अधेड़ हो गई है, पर कुमुद के लिए तो देखना चाहिए।‘  ढ़ोलक की थाप के साथ नाच –गाने तो चल ही रहे थे, निंदा रस भी खुलकर बरस रहा था। ‘अरे कुमुद! अबकी तू उठ,बहुत दिन से तेरा नाच नहीं देखा, ससुराल जाने के लिए थोड़ी प्रैक्टिस कर ले’ –बुआ ने हँसते हुए कहा। ‘भाभी अब कुमुद के लिए लड़का देखो, नहीं तो यह भी कोमल की तरह बुढ़ा जाएगी नौकरी करते- करते,फिर कोई दूल्हा ना मिलेगा इसे। ढ़ोलक की थाप थम गई और बात चटाक से लगी घरवालों को। नाचने के लिए उठते कुमुद के कदम मानों वहीं थम गए लेकिन चेहरा खिल गया। ऐसा लगा मानों किसी ने तो उसके दिल की बात कह दी हो। वह उठी और दिल खोलकर नाचने लगी।

कुमुद की माँ अपनी ननदरानी से उलझ रही थीं– ‘बहन जी! आपको रायता फैलाने की क्या जरूरत थी सबके सामने यह सब बात छेड़कर। इत्ता दान दहेज कहाँ से लाएं दो-दो लड़कियों के हाथ पीले करने को। ऐरे – गैरे घर में जाकर किसी दूसरे की जी- हजूरी करने से तो अच्छा है अपने छोटे भाई का परिवार पालें। छोटे को सहारा हो जाएगा, उसकी नौकरी भी पक्की ना है अभी। कोमल तो समझ गई है यह बात,पर इस कुमुद के दिमाग में ना बैठ रही। खैर समझ जाएगी यह भी’ —

ढ़ोलक की थाप और तालियों के बीच इन सब बातों से अनजान कुमुद मगन मन नाच रही थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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