श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे .. रामलला। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 204 ☆
☆ संतोष के दोहे.. रामलला ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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राम लला के दरश बिन, हमें न आता चैन
लगी आस दिल में बहुत, चैन नहीं दिन-रैन
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चैन नहीं दिन-रैन, अवध है हमको जाना
प्यासे हमरे नैन, दरश का दिल में ठाना
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कहते कवि संतोष, बनें सबके काम भला
काम करो वह खूब, साथ सब के रामलला
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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