आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत – समा गया तुम में।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 177 ☆
☆ सॉनेट – ज्ञान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।
सुमति ज्ञान की राह दिखाती।
कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।
अपरा-परा न दूर रही हैं।।
परा मूल है, छाया अपरा।
पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।
अपरा नश्वर है सच मानो।।
अविनाशी अक्षरा है परा।।
उपज परा से मिले परा में।
जीव न जाने जा अपरा में।
मिले परात्पर आप परा में।।
अपरा राह साध्य यह जानो।
परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।
भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
८-२-२०२२
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