श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# भूख #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 169 ☆
☆ # भूख # ☆
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थानेदार ने
उस मासूम बच्चे से पूछा ?
तुमने ब्रेड और रोटी
क्यों चुराई ?
तुममें इस उमर में
कैसे आयी यह बुराई ?
क्या तुम नहीं जानते हो ?
कानून को नहीं मानते हो ?
यह गुनाह है, जुर्म है
क्या तुम्हें नहीं
कोई शर्म है?
तुम्हें सजा हो सकती है
तुम्हें जेल भी
हो सकती है
वह मासूम
अपने आंसू
पोंछते हुए बोला –
साहिब!
यह सब मैं
नहीं जानता हूं
पर कानून को जरूर
मानता हूं
घर में,
मेरी मां बीमार पड़ी है
जीवन भर वो भी
भूख से लड़ी है
दो छोटे भाई बहन
रोटी के लिए
तड़प रहे है
भूख से लड़ रहे हैं
साहिब! मै नहीं जानता
क्या सही, क्या चूक है ?
मेरे आंखों के आगे
तो बस
उन सबकी
भूख है, भूख है, भूख है …….? /
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© श्याम खापर्डे
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