श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “समय चक्र के सामने…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 121 – समय चक्र के सामने… ☆
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बच्चे हर माँ बाप को, लगें गले का हार।।
समय चक्र के सामने, फिर होते लाचार।।
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समय अगर प्रतिकूल हो, मात-पिता हों साथ।
बिगड़े कार्य सभी बनें, कभी न छोड़ें हाथ।।
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जीवन का यह सत्य है, ना जाता कुछ साथ।
आना जाना है लगा, इक दिन सभी अनाथ।।
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मन में होता दुख बहुत, दिल रोता दिन रात ।
आँखों का जल सूखकर, दे जाता आघात ।।
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जीवन का दर्शन यही, हँसी खुशी संग साथ ।
जब तक हैं संसार में, जियो उठाकर माथ ।।
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तन पत्ता सा कँापता, जर्जर हुआ शरीर ।
धन दौलत किस काम की, वय की मिटें लकीर ।।
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जीवन भर जोड़ा बहुत, जिनके खातिर आज ।
वही खड़े मुँह फेर कर, हैं फिर भी नाराज ।।
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छोटे हो छोटे रहो, रखो बड़ों का मान ।
बड़े तभी तो आपको, उचित करें सम्मान ।।
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दिल को रखें सहेज कर, धड़कन तन की जान ।
अगर कहीं यह थम गयी, तब जीवन बेजान।।
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परदुख में कातर बनो, सुख बाँटो कुछ अंश।
प्रेम डगर में तुम चलो, हे मानव के वंश ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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