हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 34 ☆ कविता – बसंती बयार ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका एक सामयिक कविता “बसंती बयार”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 34

☆ कविता – बसंती बयार  

 

झीलें चुप थीं और

पगडंडियाँ खामोश,

गुनगुनी धूप भी

चैन से पसरी थी,

 

अचानक धूप को

धक्का मार कर

घुस आयी थी,

अल्हड़ बसंती बयार

मौन शयनकक्ष में,

 

अलसाई सी रजाई

बेमन सी सिमटकर

दुबक गई थी मन में,

 

अधखुले किवाड़ की

लटकी निष्पक्ष सांकल

उछलकर गिर गई

थी उदास देहरी पर,

 

हालांकि मौसम

डाकिया बनकर

खत दे गया था बसंत का,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

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