श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना बलि बोल कहे बिन उत्तर दीन्ही। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 187 ☆ बलि बोल कहे बिन उत्तर दीन्ही

आम बोलचाल की भाषा के मानक तय होते हैं जिन्हें सुनते ही अपने आप विशिष्ट अर्थ निकलता है। लिखने पढ़ने वालों को इनका उपयोग करते समय सतर्कता बरतनी चाहिए। शब्द ब्रह्म होते हैं जिनका  अस्तित्व ब्रह्मांड में बना रहता है, जो देर सबेर लौट कर आते हैं। इसलिए अनुभवी लोग कहते हैं, तोल मोल के बोल, अच्छा और सच्चा बोलो।

जब तक भाषा पर पकड़ मजबूत न हो अपनी बातों को बोलते समय ध्यान रखना चाहिए। एक बार अनर्थ हो तो उसे अनेकार्थी बनने से कोई नहीं रोक सकता। सब लोग अपनी मर्जी से व्याख्या करते हैं।

कहते हैं क्षमा बड़न को चाहिए छोटो को उत्पात। पर प्रश्न ये है, कि कोई कब तक युवा बना रहेगा कभी तो बुजुर्ग होना होगा, यदि समझदारी नहीं दिखाई तो जिम्मेदारी मिलने से रही। आखिर मुखिया को मुख सा होना चाहिए जो-

पाले पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।

जितने लोग उतनी बातें, पर कुछ मुद्दों में सभी एक सुर से सही का साथ देते हैं और भीड़ में अकेले रह जाने का दर्द तो गलती करने वाले को भुगतना होगा। खैर जब जागो तभी सबेरा समझते हुए क्षमा मांगो और नयी शुरुआत करते हुए सर्वजन हितात सर्व जन सुखाय पर चिंतन करके राष्ट्रप्रेमी विचारों के साथ आगे बढ़ो।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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