हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 36 – लघुकथा – रोका ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण लघुकथा  “रोका”।  एक माँ और पिता के लिए बिटिया के विवाह जुड़ने से विदा होते तक ही नहीं, अपितु  जीवन में कई ऐसे क्षण आते हैं जो आजीवन  स्मरणीय होते हैं।  वेअनायास ही हमारे नेत्र नम कर देते हैं।  और यह लघुकथा  भी सहज ही हमारे नेत्र नम कर देती है। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी  ने  मनोभावनाओं  को बड़े ही सहज भाव से इस  लघुकथा में  लिपिबद्ध कर दिया है ।इस अतिसुन्दर  लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 36 ☆

☆ लघुकथा – रोका 

सुगंधा आज बहुत ही खुश थी। क्योंकि उसकी बिटिया को देखने लड़के वाले आने वाले थे। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था।

घर में त्यौहार का माहौल बना हुआ था। मीनू, सुगंधा की बिटिया बहुत सुंदर भोली प्यारी सी बिटिया। सभी की निगाहें सामने सड़क से आती जाती गाड़ियों पर थी। समय पर गाड़ी से उतर परिवार के सभी सदस्य घर आए। बातों ही बातों में सभी का मन उत्साह से भर उठा। और मीनू को देखने के बाद लड़के और उसके परिवार वाले बहुत खुश हो गए और  मीनू उनको पसंद आ गई।

तुरंत ही बातचीत कर रोका करने को कहने लगे क्योंकि सुगंधा भी इतनी जल्दी सब हो जाएगा। इसका आभास नहीं लगा सकी थी। आंखें और गला दोनों भर आया। स्वादिष्ट भोजन खा लेने के बाद पंडित जी को बुलाकर साधारण तरीके से रोका का कार्यक्रम करने को कहा गया।

दोनों घर परिवार आमने सामने बैठ कर पंडित जी के कहे अनुसार साधारण सामग्री से मंत्रोच्चार कर लड़के की मां को बिटिया की ओली में सगुन डालने को कहा… जैसे ही लडके की  माँ कुछ रुपया और मिठाई का डिब्बा ओली डाल रही थी बिटिया को। बिटिया की मां सुगंधा प्यार और स्नेह के कारण रो पड़ी, आंखों से आंसू गिरने लगे। यह देख लड़के की मां भी रो पड़ी। देखते ही देखते ऐसा लगने लगा मानो बिटिया की विदाई अभी होने वाली है।

इस समय की नजाकत को देखते हुए लड़के के पिताजी जो काफी समझदार और सुलझे हुए व्यक्तित्व के धनी। उन्होंने तुरंत बात संभाली और जोरदार हंसी ठहाके लगाते हुए ताली बजाकर कहने लगे क्यों श्रीमती जी अपना रोका याद कर रही हो याने सास भी कभी बहू थी। पत्नी भी हंसते हुए शरमाने लगी।

सुगंधा भी अपने समधी के व्यवहार कुशलता पर हंस पड़ी और गर्व करने लगी। सब कुछ हंसी खुशी संपन्न हुआ।

शादी का मुहूर्त निकाल कर पंडित जी बहुत खुश हुए। मीनू को बहू के रूप में पाकर लड़के वाले गदगद थे। और हंसी खुशी विदा होकर जाने लगे मानों कह रहे हो रोका हमने कर लिया। अब जल्दी ही विदाई करा कर ले जाएंगे। मीनू भी बहुत खुश थी।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश