सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “खामोशी”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 27 ☆
बारिश है
कि बरसे ही जा रही है,
काले बादलों ने
हरी-भरी धरती को भिगो रखा है,
एक अजीब सी खामोशी है हर तरफ!
परिंदों की आवाज़
कहीं खो गयी है,
गुल भीग-भीगकर
नम हो गए है
और झर रहे हैं,
बस हवाएं हैं कि
ज़ोरों से बोले जा रही हैं
और मचल रही हैं
कुछ कहने को!
मेरा दिल भी
बहुत कुछ कहना चाहता है
पर इस खामोशी ने
मुझे भी भिगो रखा है
और आज मैं बैठी रहना चाहती हूँ
बस चुपचाप एक कोने में
अपने मन के साथ,
अपनी ज़िदगी की किताब के
हर पन्ने को को
बस पलट-पलटकर देखना चाहती हूँ;
बस यही तमन्ना है
कि जितना हो सके
चूस लूँ जुस्तजू के वो सारे लम्हे
जिसकी चिंगारी ने मेरे ज़हन में
रौशनी भर दी थी!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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