हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 35 – सोच के अनुरूप ही परिणाम भी…. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा जी की एक प्रेरक कविता “सोच के अनुरूप ही परिणाम भी….”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 35 ☆
☆ सोच के अनुरूप ही परिणाम भी…. ☆
एक पग आगे बढ़ो
पग दूसरा आगे चलेगा।
एक निर्मल मुस्कुराहट
पुष्प खुशियों का खिलेगा।
एक सच के ताप में
सौ झूठ का कल्मष जलेगा।
इक निवाला प्रेम का
संतृप्ति का एहसास देगा।
सज्जनों की सभासद में
एक दुर्जन भी खलेगा।
खोट है मन में यदि तो
आस्तीन विषधर पलेगा।
प्रपंचों पर पल रहा जो
हाथ वो इक दिन मलेगा।
जी रहा खैरात पर
वो मूंग छाती पर दलेगा।
अंकुरित होगा वही
जो बीज भूमि में गलेगा।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 989326601